रविवार, 27 फ़रवरी 2011

भ्रष्टाचार,भ्रष्टाचार,भ्रष्टाचारआज दसों दिशाओं से यही आवाज सुनाई दे रही है। हर आदमी के मन में एक ही कामना है कि कैसे भी हो इस भ्रष्टाचार रूपी दानव से मुक्ति मिलनी चाहिए। सब लोग चिन्ताग्रस्त है। गजब इस बात का है कि जनता की इस चिन्ता से हमारे कर्णधार पूरी तरह बेफिक्र नजर आ रहे है। उन्हें मालुम है कि इस देश की जनता बड़ी लालची और लोभी है। जनता के लोभ और लालच के कारण ही तो भ्रष्टाचार फल फूल रहा है। सब को दो नंबर के काम जो कराने है। जब गलत काम कराओगे तो उसके एवज में करने वाले को कुछ तो मिलना ही चाहिए । पापी पेट का सवाल है।

अगर आज भ्रष्टाचार रूपी दानव है तो उसके लिए जिम्मेदार नेता नहीं बल्कि जनता ही है। लोकतंत्र का मतलब होता है कि जनता का शासन । जैसी जनता वैसा शासन । फिर क्यों चिल्ला रहे हो कि भ्रष्टाचार है। कहावत है कि जैसा बोओगे वैसा ही काटोगे। जनता का भ्रष्टाचार चुनावों खुब देखा जा सकता है। अब जनता के लिए चुनाव विशेष पर्व बन चुके है। चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशी को जनता को पटाने के लिए बड़े-बड़े यत्न करने पड़ते है। जगह-जगह चुनाव कार्यालयों पर लंगर चलाने पड़ते है। इसके अलावा सोमरस का भी इन्तजाम करना पड़ता है। प्रत्याशी न करे तो उसको चुनाव के दौरान गाली खानी पड़ती है। जेब में नहीं है दाने अम्मा चली भुनाने । जब औकात नहीं थी तो किसने कहा कि चुनाव लड़ना ? क्योंकि जनता को भी मालुम है कि यही मौका है कि गुलदर्रे उड़ालो। जीतने के बाद यह गुलदर्रे उड़ायेगा । जनता का तो वो हिसाब है कि चित्त भी मेरी पट्ट भी मेरी और अन्टा हमारे बाप दादों का । अब तुम्ही बताओं कि प्रत्याशी घर फूंक के तो तमाश नहीं देखेगा आखिर उसके भी बाल-बच्चे है। अब तुम्हीं ही बताओ नेता को भ्रष्टाचार करने को किसने मजबूर किया? यही न जनता ने तो फिर भ्रष्ट कौन नेता या जनता?

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