रविवार, 20 फ़रवरी 2011

-अशोक मिश्र
तुम्हारे बाप का है राज यह मैं जानता हूं
कटेगा शीश मेरा आज, यह मैं जानता हूं।

शांति का पाठ पढ़ाने नगर में आ गए हिजड़े
बजेंगे फिर वही सुरसाज, यह मैं जानता हूं।

मंदिर-मस्जिद की बातें सुनके सुखिया रो पड़ी
लुटेगी फिर उसी की लाज, यह मैं जानता हूं।

महल में शांति छायी है, नगर के लोग सहमे हैं
गिरेगी झोपड़ी पर गाज, यह मैं जानता हूं।

प्रेम के किस्से किताबों में पढ़ा जब भी पढ़ा है
तुम्हारे प्रेम का क्या राज, यह मैं जानता हूं।

फूल खुशियों के खिले होंगे तुम्हारे गांव में
पर नहीं दोगे मुझे आवाज, यह मैं जानता हूं।

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