मंगलवार, 22 फ़रवरी 2011

योग गुरू बाबा रामदेव इस वक्त देश के एक चर्चित सेलिब्रटीज है, जो समय समय पर राजनैतिक भ्रष्टाचार और राजनीति पर टीका टिप्पणी कर सुर्ख़ियों में बने रहते है। बाबा का योग से शुरू हुआ सफर अब राजयोग की ओर चल पड़ा है। आजकल बाबा योग की पाठशाला में राजयोग का पाठ पढ़ाने में लगे है। भ्रष्टाचार को लक्ष्य कर वह दिल्ली के सिंहासन पर आसीन होने के लिए कृत संकल्पित और अधीर नजर आ रहे है। यहां बड़ा सवाल है कि बाबा पहले देश की जनता को यह बताये कि वह आध्यात्मिक शख्सियत है या राजनीतिक या फिर व्यापारिक। अगर बाबा आध्यात्मिक शख्सियत है तो उन्हें कीचड़ से दूर ही रहना चाहिए। देश के नवनिर्माण के लिए भ्रष्टाचार के साथ-साथ अन्य सामाजिक कुरीतियों व धार्मिक पाखंड के खिलाफ स्वामी विवेकानंद और अपने आदर्श महापुरूष महर्षि दयानंद सरस्वती की तरह जन जाग्रति का काम करना चाहिए ।आर्यसमाज के आदर्श और सिद्धांतों के वाहक बाबा रामदेव सत्ता भोग के लिए उन्हे तिलांजंलि देने पर तुले है। एक सच्चे समाज सुधारक और आध्यात्मिक विभूति के लिए के लिए सत्ता की कोई अहमियत नहीं होती। भक्ति काल की संत परंपरा ऐसे ही प्रमाणों से भरी पड़ी है। मुगल सल्तनत से बेखौफ कबीर दास जैसी अनेकों विभूतियों ने रूढ़ियों और पाखंड के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की। आधुनिक काल में यही काम भारतीय सनातर धर्म के सच्चे प्रवक्ता स्वामी विवेकानंद और महर्षि दयानंद सरस्वती ने वो कर दिखाया जो सरकारेऔर साधन संपन्न लोग नही कर सके। देश के स्वतंत्रता संग्राम में आर्य समाज का अविस्मरणीय योगदान और कुर्बानियों का इतिहास किसी से छिपा नहीं है। लाला लाजपत राय, शहीद भगत सिंह और उनके आदर्श करतार सिंह सरावा जैसे महान क्रांतिकारी आर्यसमाज के संस्कारों से पल्लवित, पोषित थे। इनके अलावा हजारो ंआर्यसमाज के अनुयायियों ने ब्रिटिश हुकूमत की यातनाएं झेलते हुए आजादी के संघर्ष को अन्जाम तक पहुंचाया। दयानंद सरस्वती द्वारा सामाजिक कुरीतियों और रुदियों के खिलाफ चलाये गये अभियानो पर आजाद भारत की सरकार को कानून बनाने के लिए बाध्य होना पड़ा। यह महर्षि दयानंद के सिद्धांतों, आदर्शों और सच्चे संकल्प की विजय थी। इस सफलता का कारण उनका पारदर्शी कृतित्व और व्यक्तित्व था। सच्चे लोगों का आत्म विश्वास ही उनका सबसे बड़ा साधन होता है। यही काम स्वामी विवेकानंद ने किया, जिन्होंने अपने गुरू रामकृष्ण परमहंस के आदेश- नर सेवा नारायण सेवा को गुरू मंत्र मानकर दीन-हीन अभावग्रस्त लोगों की सेवार्थ अस्पताल, विधवाश्रम,अनाथाश्रम आदि संस्थाओं की स्थापना कर राष्टÑ निमार्ण में आध्यात्मिक सरोकार क ो स्थापित किया। बाबा रामदेव के मिशन में ऐसा कुछ भी दिखायी नहीं देता है। स्वस्थ और निरोगी भारत का उद्घोष करने वाले बाबा रामदेव के योग शिविरों का जो यथार्थ है वह इस बात को पुष्ट करता है कि समाज के अन्तिम व्यक्ति के लिए कोई स्थान नहीं है। योग शिविरों में पास द्वारा प्रवेश मिलता है जिसका आधार अर्थ होता है। पास की श्रेणीयां होती है, साधारण पास, वीआईपी पास,वीवीआईपी पास की श्रेणी मे ंबंटे हैं। रही बात उनकी दिव्य आयुर्वेद फारमेसी औषधियों की तो बाजार में मौजूद अन्य आयुर्वेदिक कम्पनियों की दवाओं से मंहगी है। जो व्यावसायिक मुनाफे की बात की पुष्टि कर रही है। भ्रष्टाचार के मुद्दे पर बाबा सिर्फ राजनीतिक भ्रष्टाचार पर ही चोट करते है, वही दूसरी ओर धार्मिक जगत में व्याप्त भ्रष्टाचार पर मौन साधे रहते है। धार्मिक जगत मे पैसे का जो खेल है,वह राजनीतिक भ्रष्टाचार से किसी कीमत पर कम नहीं है। देश में मौजूदा धार्मिक संस्थानों के पास अकूत धन संपदा का अंबार लगा है। जिसका राष्ट्र सेवा और जन कल्याण में कोई योगदान नहीं है। एक आंकलन के अनुसार देश के धार्मिक संस्थानों के पास मौजूद धन संपदा का एक चौथाई धन राष्टÑ कल्याण मे लगा दिया जाये तो हम विदेशी कर्ज से मुक्त होकर बुनियादी सुविधाओं के साथ लाखों करोड़ों लोगों कों रोजी रोजगार मुहैया कराया जा सकता है। इस दृष्टि से बाबा रामदेव का भ्रष्टाचार का मिशन विशुद्ध राजनैतिक महत्वाकांक्षा को ही दर्शाता है। इस परिप्रक्ष्य मे एक कहावत सटीक बैठती है कि औरन को बुढ़िया सीख दे, अपनी खटिया भीतर ले।

1 टिप्पणी:

  1. विवेक जी ,आप तो ऐसे कह रहे है जैसे बाबा रामदेव इस देश के नागरिक ही नहीं है , इसलिए बाबा को अपनी आवाज़ उठाने हक़ नहीं है| बाबा रामदेव भी इस देश के नागरिक है उन्हें अपनी बात करने का पूरा हक़ है ,चाहे वो राजनीति के बारे में ही क्यों न कही गयी हो | कांग्रेस की ये तानाशाही नहीं चलेगी , ये लोग चाहते कि ये घोटाले पे घोटाले करते रहे और जनता चुप बैठी रहे | अगर किसी ने इन्हें टोक दिया तो कहते कि ये आपका काम नहीं है | जैसे इस देश में लोकतंत्र न हो के कोई राजतन्त्र व्यवस्था हो जिसमें हमने किसी राजा को टोक दिया हो |
    बाबा रामदेव की कथित 1100 करोड़ की सम्पत्ति है जिसके बारे में खुले तो नहीं पर ढके छुपे ढंग से यह कहा जा रह है कि वह बाबा रामदेव ने टैक्स दिये बिना, या कहें की काले धन से बनाई है… हो सकता है ऐसा हो, लेकिन सोचने पर मुझे इसकी संभावनायें न के बराबर दिखीं विवेक जी...... किस तरह, आइये विचारें.
    एक अस्पताल, एक आश्रम, एक खान-पान का कारखाना, एक दवाई का कारखाना, मुख्यत: यह वह सम्पत्ति है जो बाबा रामदेव ने बनाई है.
    आश्रम बड़ा है जहां हजारों लोग योग शिविर व अन्य सुविधाओं का लाभ उठाते हैं. वहां बाबा कितना रहते हैं? हमने तो इस योगी को हमेशा शहर-शहर अलख जगाते देखा.
    अस्पताल में लोगो का इलाज होता है. निश्चित ही इसकी इमारत व सुविधायें बनाने में पैसा लगा है. लेकिन इसका फायदा बाबा को मिल रहा है या लोगो को़?
    खाने के कारखाने में बाबा रामदेव की संस्था शुद्ध, शाकाहारी व स्वास्थ वर्धक खाद्य पदार्थ बनाती है. और यह कोई छुपी बात नहीं. बाबा बार-बार अपने कारखाने की बात करते हैं और बताते हैं कि उनकी संस्था में 5000 से भी ज्यादा लोग कार्यरत हैं.
    दवाई का कारखाने में दवाई ही बनती है जो विभिन्न पतंजलि चिकित्सालयों के जरिये लोगों कर पहुंचती है.
    बाबा रामदेव को यह सम्पत्ति दान में मिली और अपने उत्पादों की बिक्री से भी मिली. 1100 करोड़ की सम्पत्ति बहुत बड़ी नहीं है, अगर दूसरे बाबाओं (जैसे आसाराम जी, ओशो) आदी को देखें तो उनसे कम ही बैठेगी. बाबा रामदेव की सम्पत्ति ऐसी संस्थाओं में है जो जनता की भलाई के लिये कार्य कर रहीं है.निश्चित ही बाबा रामदेव को देश भर में अपने शिविर व कार्य चलाने के लिये जिन पैसों की जरुरत होगी, उन्हें अर्जित करना गुनाह नहीं हो सकता.
    बाबा रामदेव की संस्था बहुत दिनों से भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ रही है, और उनका काले धन से मोल लिया बैर, अब सरकार के लिये जो दिक्कत पैदा कर रहा है उससे सरकार परेशान हे. बाबा का कहना है कि उनकी संस्था की सारी सम्पत्ति पूरी तरह साफ है व हर पैसे का हिसाब दिया गया है और टैक्स भी चुकाया गया है. यह कोई बेईमानी से कमाया धन नहीं है. सरकार कई बार जांच कर चुकी है और इस जांच के नतीजे में अब तक कोई भी गड़बड़ नहीं मिली है. सोचिये अगर कोई बेईमानी बाबा ने की होती तो सरकार से दुश्मनी लेने वाले इस साधू का सरकार क्या हाल करती. काले धन के सिस्टम से लड़ना कोई मजाक नहीं है. जब कोई ऐसा करता है तो जान की बाजी भी लगाने को तैयार रहना पड़ता है. हर साल बहुत से इमानदार लोग इस लड़ाई की भेंट चढ़ जाते हैं. बाबा रामदेव ने जब भ्रष्टाचार के खिलाफ अपना देशव्यापी अभियान शुरु किया उसी दिन वह इन लोगों की आंख की किरकिरी बन गये.
    जो व्यक्ति बार-बार यह जिद करता हो कि काले धन के खिलाफ सख्त कानून बने, बड़े नोट बंद हों, और जांच करने वाली संस्थायें निष्पक्ष हों, और लगातार इस बात के लिये जनता में अलख जगा रहा हो, वह खुद काला धन रखे तो उसे अपनी मुहिम से फायदा होगा या नुक्सान ?बाबा रामदेव तो इस मुहिम के बिना भी सफल थे. उनके योग के लाखों मानने वाले हैं. उन्हें बहुत दान मिल जाता, बहुत पैसा आ जाता, सारे नेता पैर छुते रहते, कुछ मुश्किल नहीं उठानी पड़ती. लेकिन फिर भी वह काले धन के खिलाफ अगर लड़ रहें तो इसमें उनका खुद का फायदा नहीं सारे देश का फायदा है.तो अब हम क्या इन नेताओं के कहने पर उन्हें बेईमान मान लें? सरकार के कुछ नेताओं ने कह दिया, और चैनलों ने दिखा दिया, इससे बाबा का चरित्र नहीं मिट जाता. विवेक जी यह न भूलें कि इस घिनौने इल्जाम को लगाने वाले उन्हीं के नुमाइंदे हैं जिन्होंने लाखों करो़ड़ का घोटाला देश में कर दिया. वह तो ऐसा कहेंगे ही, क्योंकि अगर लोग बाबा की ईमानदारी पर शक करने लगें को उनकी भ्रष्टाचार के खिलाफ चल रही लड़ाई नष्ट हो जायेगी. हम इन लोगों के बहकावे में न आयें तो अच्छा है. बाबा ने अब तक ऐसा कुछ नहीं किया जिससे की लगे कि वह बेईमान हैं. अगर आगे ऐसा कुछ मिले तो हमें बाबा को भी रिजेक्ट करने का हक है

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