आज देश से बसंत चाहता यह पावन अनुबंध
लुट न जाये बाहर, मालियों मधुवन की सौंगंध
तुम्हें इस उपवन की सौंगध
देश के जन- जन की सौंगंध
सोने सा पंजाब मेरा और चांदी सा कश्मीर
खानों का वह प्रदेश निराला ब्रह्मपुत्र के तीर
नागालैंड,मिजोरम, त्रिपुरा उत्तर पूर्व की प्राचीर
रक्षा करनी इन सबकी, यह सब भारत की जागीर
अलग न करने पाये कोई दुश्मन, डाल के राजनीति के फंद
मिट न जाय बाहर मालियों ....
उत्तर की सीमा पर चीन नित डाला करता डेरा
दक्षिण में श्रीलंका के हाथों नित मरता तमिल मछेरा
पश्चिम में पाक लगा रहा अमरीकी शस्त्रों का ढेरा
पूर्व में बंगला देश रोकता कंटीले तारों का घेरा
सजग बने रहना सीमा पर होकर के निर्द्वन्द
लुट न जाय बहार मालियों ......
राष्ट्रीय एकता और अखंडता ऊपर है जन-जन से
हिन्दू,मुस्लिम, बौद्ध, सिख, सब फूल है इसी चमन के
जाती धर्म औ रूपरंग के भेद है स्वार्थी मन के
इन्हें लड़ाते रहे युग-युग से दुश्मन कानून अमन के
सांप्रदायिक तत्वों पर लगा दो खुलकर के प्रतिबंध
लुट न जाय बाहर मालियों.......
लूट-लूट कर जनता का धन, जो लगा रहे अंबार
मिलावट, तस्करी, कालेधन से करते मुद्रा को लाचार
ये सब दुश्मन है जनता के , इनको नहीं देश से प्यार
जो जासूसी करते विदेश की, वे सब भारत मां के गद्दार
इन गद्दारों का नाम मिटा दो,करके अपनी आवाज बुलंद
आज देश से बसंत चाहता यह पावन अनुबं
लुट न जाय बाहर मालियों .......
राम गोपाल मथुरिया
गुरुवार, 3 फ़रवरी 2011
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