शनिवार, 19 फ़रवरी 2011

19 फरवरी से क्रिकेट वर्ड कप की शुरूआत हो चुकीहै। ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन रहे देशों में क्रिकेट का बुखार जोर पकड़ चुका है। अंग्रेज सदैव से ही दूरदृष्टा,सफल व्यापारी , कुटिल कुटिनीतिज्ञ रहे है। अंग्रेजों की इन विशेषताओं के दर्शन आज भी उनके अधीन रहे राष्ट्रों के सामाजिक, राजनीतिक वातावरण में किये जा सकते है। अंग्रेजों से मुक्त राष्ट्रों पर अंग्रेजी शासन का अक्स आज भी प्रतिबिम्बित हो रहा है। आज क्रिकेट खेल होकर लोगों के लिए एक नशा बन चुका है। भूख, गरीबी, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, मंहगाई, असमानता जैसी अन्यान्य समस्याओं से जूझ रहे देश में नशेबाजो की तरह आमोंखास क्रिकेट की पिन्नक में देखा जा सकता है। ऐसा प्रतीत होता है कि राष्ट्र का संपूण विकास और स्वाभिमान जैसे क्रिकेट में ही निहित है। जैसे विश्व कप जीतने के साथ ही सारी समस्याओ का निदान स्वत: हो जायेगा और हम एक शक्ति संपन विकसित राष्ट्र बन जायेंगे।

एक- एक गेंद से जुड़े परिणाम को जानने की उत्कंठा तो यही दर्शाती है कि आज क्रिकेट हमारे नित्य धर्म - कर्म का अभिन्न हिस्सा बन चुका है। यही अंग्रेजों की दूरदृष्टि का प्रमाण है। जिसके पीछे अरबों-खरबों रूपये का बाजार और अवैध और काले कारोबार के रूप में सट्टे का खेल जग जाहिर है। तब क्रिकेट किसी भी द्रष्टि से एक स्वस्थ्य खेल नहीं कहा जा सकता। बाजार की सबसे बड़ी विशेषता या विलक्षणता यह है कि वह सबसे पहले वह को आकर्षिक कर आदी बनाता है फिर मुनाफे का मोटा खेल खेलता है। क्रिकेट मे नशे के सभी लक्षण मौजूद है जो व्यक्ति के दिल और दिमाग दोनों पर अपना सरूर बनाये रखता है। एक रिक्सा चालक से लेकर नौकरीपेशा, व्यापारी सहित हर वर्ग का आदमी एक- एक बॉल के परिणाम को जानने के लिए तीव्र उत्सुक नजर आता है। आईपीएल का भ्रष्टाचार इसका प्रमाण है कि आज क्रिकेट सिर्फ और सिर्फ पैसे का खेल है। हमारी मूखर्ता ये है कि हम राष्ट्र का बेसकीमती समय जाया करते है।

क्रिकेट खेलो का महादानव है जिसने अन्य खेलो का असित्व लगभग समाप्त सा ही कर दिया है। क्रिकेट ने किशोर और युवाओं को दिवास्वपन में जीने का आदी बना दिया है जो जमीनी हकीकत से दूर मुगेंरी लाल की तरह क्रिकेट स्टार बनने के ख्यालों खोये रहते है। मनौविज्ञान की दृष्टि से असमान्य व्यवहार का लक्षण है। एक स्वस्थ्य दिमाग का व्यक्ति हमेशा यथार्थ से मुंह नहीं मोड़ता। व्यवस्था का यथार्थ तो यह है कि आज लोगों के मुंह से निवाला छीना जा रहा है, न इंसाफ है और न सुरक्षा ।

अब रही बात हमारे क्रिकेट स्टारो की तो उन्हें राष्ट्र की इन समस्याओं से कोई लेना-देना नहीं बस उनकी नजर तो सिर्फ धन पर है कि अपनी उपलब्धियों को कैसे भुनाया जाये? विज्ञापन के अलावा इवेन्टस,शो आदि क्रिया-कलापों से सिर्फ और सिर्फ पैसा कमाने मे जुटे रहते है। राष्ट्र और जन सरोकारों से इनका दूर-दूर तक कोई लेना -देना नहीं है । आज क्रिकेट एकादमी बनाकर लोग क्रिकेट का व्यापार करने पर उतर आये है।

बाजार का पैरोकार मीडिया क्रिकेट को एक उत्पाद के रूप में प्रमोट करने में अपनी निर्णायक अहम भूमिका अदा कर रहा है। क्रिकेट का वायरस जनसरोकरों विमुख करने का ही काम कर रहा है। यह क्रिकेट का विरोध नहीं बल्कि उसकी मीमांसा है।

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