शुक्रवार, 9 जनवरी 2015


शनिवार, 3 जनवरी 2015

क्त है आतंक के खिलाफ एकता का संदेश देने का
विवेक दत्त मथुरिया
कूटिनीति के प्रख्यात आचार्य चाणक्य ने कहा था कि किसी भी राज्यव्यवस्था का कर्तव्य, आक्रमण से अपनी प्रजा की रक्षा करना होता है। प्रजा का सुख ही राजा का सुख और प्रजा का हित ही राजा का हित । प्रजा के सुख और हित को दो स्थानों से खतरा होता है।  पहला बाह्य शत्रु का है, तो दूसरा राज्य के अंदर मौजूद शत्रु का। यही बात आज की आधुनिक और प्रगतिशील लोकतांत्रिक व्यवस्था पर भी लागू होती है। हमारा देश इन दोनों ही शत्रुओं से मुकाबला कर रहा है। बाह्य खतरा प्रायोजित आतंकवाद का तो आंतरिक खतरा अलगाववाद का बना हुआ है। दो स्तरीय आतंकवाद की समस्या में अटका देश, चाहकर भी समृद्धि के पथ पर उस गति से नहीं चल पा रहा, जितना उसको चलना चाहिए । प्रयोजित बाह्य आतंकवाद के लिए हमें खुफिया और सुरक्षा तंत्र को नई अत्याधुनिक तकनीकी और रणनीति से सुसज्जित करना होगा। दुनिया भर में हो रही आतंकी घटनाओं का समाजशास्त्रीय मनोवैज्ञानिक और तकनीकि अध्ययन और प्राप्त खुफिया जानकारियों के विश्लेषण के आधार पर माकूल जवाब की रणनीति तैयार रहनी चाहिए। अक्सर देखा गया है कि आतंकी वारदात होने के बाद एकाएक सक्रियता दिखाई देती और कुछ समय बाद हमारी खुफिया और सुरक्षा एजेंयिां निष्क्रिय सी प्रतीत होने लगती है। यह समझने वाली बात है कि आतंकी हमारी सक्रियता और निष्क्रियता पर नजर रखकर ही अपने काम का अंजाम देते हैं। 26/11 का मुुंबई हमला हमारी चूक का ही परिणाम था। उसके बाद भी देश के अन्य शहरों पर विस्फोट की घटनाएं हुई हैं, जो हमारी खुफिया और सुरक्षा एजेंसियों की लापरवाही या कामकाज के परंपरागत ढर्रे को दर्शाती है। ईराक में आइएस के आतंक के बाद चुनौतियां बढ़ी ही हैं। बेगलुरू और मुंबई से पकड़े गए युवकों के आइएस के साथ संबंध होने के खुलासों ने चिंता बढ़ाई है। भारत के मोस्टवांटेड दाऊद इब्राहिम के नेटवर्क की मुंबई से लेकर आजमगण तक गहरी जड़े किसी से छिपी नहीं हैं। यही नेटवर्क अपने मकसद के लिए देश के अंदर सियासी संरक्षण प्राप्त कर आंतकवादियों के लिए सीलपर मॉड्यूल तैयार करता है। आतंकवाद के लिए देश के अंदर सहायक तत्वों को ईमानदारी से चिह्नित कर कड़ी कार्रवाई करनी होगी,जिसके लिए ईमानदार अफसरों को आगे लाना होगा, यह सबसे ज्यादा जरूरी बात है। आतंकवादी खतरों को लेकर राज्यों की पुलिस का रवैया लापरवाही वाला है, जिसका पूरा लाभ आतंकी उठाते भी हैं। पुलिस का कार्य-व्यवहार और बातचीत की शैली जनसामान्य से दूरी बनाने का काम करती है। आतंकवाद से मुकाबले के लिए नागरिक सहयोग और सक्रियता अपेक्षित है। इसे लेकर भी केंद्र और राज्य सरकारों को रणनीतिक स्तर पर सोचना होगा। विकास और समृद्धि के लिए आतंक से मुक्ति पहली शर्त है। सबको मिलकर लड़ना होगा। देश की सुरक्षा के लिए यह नागरिक कर्तव्यों के निर्वहन का भी वक्त है। सियासत को भी चाहिए कि वह देश को धर्म और जाति के सियासी मसलों में उलझाकर आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा पैदा न करे। इस तरह की छुद्र सियासत को किसी भी दृष्टि से उचित नहीं कहा जा सकता। सबको मिलकर एकता का संदेश देना ही होगा।

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