रविवार, 22 सितंबर 2013

 मैं इस वक्त, बेवक्त हूं
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मैं इस वक्त, बेवक्त हूं
हूं तो पढा—लिखा
पर जाहिल और जलील हूं
क्योंकि बीच बाजार खडा हूं

यहां रिश्ते भी तिजारत है
इसलिए बेवक्त हूं
मेरी परेशानी यह है
मेरे पास दो चहरे नहीं है
दूसरा चेहरा कहां से लाउं
और किससे लाउं
जो दुनिया को पसंद आए
मेरे विचार भी समय से मेल नहीं खाते
कैसे गुजारा हो इस दुनिया में
जीना चाहता हूं
मौत का भय भी नहीं है
जीना चाहता जुल्मों की इंतहा के तक
कम से कम मौत को मुझ से मोहब्बत हो जाए
और मर सकूं मौत का सिकदंर बनकर


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