शनिवार, 17 जुलाई 2010

अब तक सुना था कि विद्या विनय सिखाती है। लेकिन मौजूदा समय में यह बात पलट चुकी है। आज की विद्या भ्रष्ट बनाती है। ऐसे प्रमाणों से रोज अखबार भरे रहते है। देश में जितने भी बड़े घोटाले अब तक हुए है , उन सब में उच्च शिक्षा प्राप्त लोगो का ही बोलबाला देखा और पाया गया है। नौकरशाही का भ्रष्ट चरित्र किसी से छुपा नहीं है। भ्रष्ट नौकरशाही के आगे समूची व्यवस्था नतमस्तक है। अपने को आला दर्जे का शिक्षित और समाज व् व्यवस्था का मसीहा कहने वाले पत्रकार भी भ्रष्टाचार की बहती गंगा में हाथ धोने से अब पीछे नहीं रहते। अब बात करें डॉक्टरों की तो यह वर्ग भी समाज में अपना सम्मान को चुका है। अब डॉक्टरों की नजर मर्ज पर नहीं मरीज की जेब पर रहती है। आज डॉक्टर धन के लिए भय के मनोविज्ञान का सहारा लेते है।
सरस्वती के उपासक और राष्ट्र निर्माता कहे जाने वाला शिक्षक वर्ग लक्ष्मी की परम साधना में रत देखा जा सकता है। अगर नेताओं की बात करें तो वे परम शिक्षित की श्रेणी में आते है। क्योंकि उनके पास वह दिव्य ज्ञान है जिसके द्वारा भ्रष्टाचार की संस्कृति अनवरत प्रगति के पथ पर नित नए कीर्तिमान स्थापित कर राही है। सत्य ओर ईमान की बात करने वालो को आज भी सुकरात की तरह जहर का प्याला पिने को मजबूर है या फिर हरिश्चन्द्र की तरह अपनी औलाद के लिए दो गज कफन के लिए भी बेबस है।
आज अपने को शिक्षित कहने वाला प्रत्येक व्यक्ति भ्रष्टाचार को किसी न किसी रूप में मान्यता दे रहा है । भ्रष्टाचार के खिलाफ कोई भी निर्णायक संघर्ष तबतक परवान नहीं चढ़ सकता,जबतक जात और धर्म के नाम पर खांचों में विभक्त रहिंगे। भ्रष्टाचार का सीधा और सपाट अर्थ है भ्रष्टा का अचार यानि टट्टी .

रविवार, 11 जुलाई 2010

महंगाई क्या है ? चुनावी लंगरों की हलुआ,पूरी का हिसाब है। जिसके लिए नेता जी को और उनकी पार्टी को मजबूरन व्यापारी और उद्योगपतियों से आर्थिक सहयोग लेना पड़ा। यह महंगाई कुछ और नहीं कार्यकर्ताओं की चुनावी हलुआ, पूरी की ब्याज सहित वापसी है। इसे ही सरकारी कृतज्ञता कहते है।
चुनावों में न जनता लंगर खाती और न महंगाई बढ़त। महंगाई के लिए सीधे तौर पर जनता ही दोषी है। आखिर सहयोग के लिए कृतज्ञता प्रकट करना किसी भी द्रष्टि से गलत नहीं है। जब उन्होंने चुनाव जैसे संघर्ष के बुरे वक्त में साथ दिया तो अब सत्ता सुख में उन्हें कैसे भूल जाएँ , यह पूरी तरह सामाजिक और मानवीय व्यवहार के खिलाफ होगा।
अगर व्यापारी और उद्योगपति चुनावी सहयोग से अपना हाथ खीच लें तो लोकतंत्र का चुनावी महापर्व ऐसा लगेगा जैसे हम लोकतंत्र का मर्सिया पढ़ रहे हों।

मंगलवार, 6 जुलाई 2010

क्यों चिल्लाते हो ?
चहु ओर भ्रष्टाचार है
यह ड्रामा है या सच्चाई ?
तुम्हारी परिभाषा अजीब है
काम हो जाये तो सब ठीक,
नहीं तो भ्रष्टाचार ।
अरे! तुम तो बुद्धिजीवी हो ,तीसमारखां हो
समाज के नेतृत्वकर्ता हो ।
दो अपने चिंतन को
क्रांतिकारी आयाम
क्यों दोगे ?
अरे! सब जानते हैं
कोठी किसकी ?
त्यागी जी की
आवाज कहाँ से ?
मौनी बाबा के आश्रम से
बच्चे किसके ?
ब्रह्मचारी जी के

Unordered List

Sample Text

Popular Posts

Text Widget