महंगाई क्या है ? चुनावी लंगरों की हलुआ,पूरी का हिसाब है। जिसके लिए नेता जी को और उनकी पार्टी को मजबूरन व्यापारी और उद्योगपतियों से आर्थिक सहयोग लेना पड़ा। यह महंगाई कुछ और नहीं कार्यकर्ताओं की चुनावी हलुआ, पूरी की ब्याज सहित वापसी है। इसे ही सरकारी कृतज्ञता कहते है।
चुनावों में न जनता लंगर खाती और न महंगाई बढ़त। महंगाई के लिए सीधे तौर पर जनता ही दोषी है। आखिर सहयोग के लिए कृतज्ञता प्रकट करना किसी भी द्रष्टि से गलत नहीं है। जब उन्होंने चुनाव जैसे संघर्ष के बुरे वक्त में साथ दिया तो अब सत्ता सुख में उन्हें कैसे भूल जाएँ , यह पूरी तरह सामाजिक और मानवीय व्यवहार के खिलाफ होगा।
अगर व्यापारी और उद्योगपति चुनावी सहयोग से अपना हाथ खीच लें तो लोकतंत्र का चुनावी महापर्व ऐसा लगेगा जैसे हम लोकतंत्र का मर्सिया पढ़ रहे हों।
रविवार, 11 जुलाई 2010
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भाई मथुरिया जी, बहुत अच्छे । लगे रहो मुन्ना भाई.... मेरी शुभ कामनाएं
जवाब देंहटाएंअशोक मिश्र