राम गोपाल मथुरियानव वर्ष नये वर्ष के स्वागत में कवि नूतन राग सुनाओ विश्व-विषमता के आगन में समता रस बरसाओ बहुत गा चुके गीत आज तक चाँद ,सितारों के ऊषा संध्या रजनी ,सूरज के झूठे प्यारों के पावस में उगते इंद्रधनु के सतरंगी तारों के बहुत सुने संगीत सावनी मेघ मल्हारों के युग युग से पीड़ित मानव को अब कविता का विषय बनाओ नये वर्ष के स्वागत ....................रचते रहे तुम सदा से उपवन की बहारों के कलियों पर मंडराते अलियों के मद मस्त नजारों के जूही,कुमोदनी ,मालती...
गुरुवार, 30 दिसंबर 2010
मंगलवार, 28 दिसंबर 2010
1:51 am
विवेक दत्त मथुरिया
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-विवेक दत्त मथुरिया यह देश किसका है?उनका, आपका या फिर हम सबकायह देश उन्हीं का हैऔर इसका पूरा विधान भी उनका हैव्यवस्था परिवर्तन की बातया जनहित में उसकी आलोचनाअभिव्यक्ति नहीं, देशद्रोह हैयह गलती भगत सिंह, आजाद, बोस ने कीऔर यही गलती कर बैठा विनायक सेन।राजा हो या राडिया, या फिर कल्माड़ी...लूटना कोई अपराध नहींस्टेट्स सिंबल है आजइनके लिए इंसाफएक दिखावा है या फिर छलावाक्योंकि ये जन-गण-मन के अधिनायक हैंइसलिए यद देश उन्हीं का हैहमारा और आपका नह...
रविवार, 26 दिसंबर 2010
9:47 am
विवेक दत्त मथुरिया
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मेरे गीत है न प्यार के, प्यार के न श्रंगार के, न मोसमी बाहर केगीत बस गाता हूँ वक्त की पुकार केवक्त क्या कह रहा, इसे पहचान लोआँख मूंद कर न कोई बात मान लोसाजिशों ने डाला आज द्वार-द्वार डेरा हैजीतता अन्धकार पिटता सबेरा हैराम गोपाल मथुर...
शनिवार, 11 दिसंबर 2010
शनिवार, 13 नवंबर 2010
3:15 am
विवेक दत्त मथुरिया
महापर्व
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विवेक दत्त मथुरिया जब सारा देश दीपावली मना रहा है, इसकी रौनक और चकाचौंध चारों तरफ फैली हुई है,तब कम ही लोग जानते हैं कि मूलत: ब्रज के रहने वाले इस पर्व को नहीं मनाते। ब्रज की हर परंपरा,खुशी और खामोशी का संबंध अनिवार्यत:यहां के परम प्यारे श्रीकृष्ण से है। दीपावली न मनाए जाने के पीछे भी वही हैं। धर्मग्रंथों में उल्लेख है कि दीपावली के दिन ही योगेश्वर श्रीकृष्ण ने गोलोक गमन किया था। शास्त्रों में वर्णन है कि योगी के देहत्यागने पर शोक नहीं मनाया जाता,...
3:08 am
विवेक दत्त मथुरिया
बाल दिवस
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-विवेक दत्त मथुरिया बचपन जीवन की सबसे स्वर्णिम अवस्था का नाम है। जाति-पांति, दीन-ईमान, अमीरी-गरीबी आदि की भावना से मुक्त। उसके दोस्त न हिंदू होते हैं, न मुसलमान। बस..दोस्त होते हैं। वे मंदिर-मस्जिद के विवाद से भी परे होते हैं। उनकी सबसे अनमोल थाती कांच की चूड़ियों के टुकड़े, ताश की गड्डी के पत्ते, कागज की पतंगें, कंचे, घिस कर चपटे किये गये पत्थर या ईंट के टुकड़े होते हैं। बचपन का यथार्थ चित्रण करते हुए प्रख्यात शायर स्व. सुरर्शन फाकिर ने कहा है कि ‘न...
मंगलवार, 19 अक्टूबर 2010
11:43 am
विवेक दत्त मथुरिया
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विजयादशमी दशहरा के पर्व को हम असत्य पर सत्य की जीत के रूप में मानते चले आ रहे है। यह सिर्फ एक परम्परा का मात्र निर्वहन है। राम-रावण के कथानक से जुडी इस परंपरा का हमारे जीवन का कोई सरोकार जुडा है ? ऐसा कुछ दूर - दूर तक कतई दिखाई नहीं देता। हकीकत तो ये है कि आज हमने राम को वनवास देकर अपने अन्दर रावण को जो बसा लिया है। रावण के पास अहंकार के कई आधार थे। हम दरिद्रियों के पास तो अहंकार की कोई वाजिब बुनियाद भी नहीं है। फिर इस मूर्खता की वजह क्या है?...
सोमवार, 11 अक्टूबर 2010
मंगलवार, 28 सितंबर 2010
शुक्रवार, 17 सितंबर 2010
शनिवार, 17 जुलाई 2010
11:44 pm
विवेक दत्त मथुरिया
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अब तक सुना था कि विद्या विनय सिखाती है। लेकिन मौजूदा समय में यह बात पलट चुकी है। आज की विद्या भ्रष्ट बनाती है। ऐसे प्रमाणों से रोज अखबार भरे रहते है। देश में जितने भी बड़े घोटाले अब तक हुए है , उन सब में उच्च शिक्षा प्राप्त लोगो का ही बोलबाला देखा और पाया गया है। नौकरशाही का भ्रष्ट चरित्र किसी से छुपा नहीं है। भ्रष्ट नौकरशाही के आगे समूची व्यवस्था नतमस्तक है। अपने को आला दर्जे का शिक्षित और समाज व् व्यवस्था का मसीहा कहने वाले पत्रकार भी भ्रष्टाचार...
रविवार, 11 जुलाई 2010
1:07 am
विवेक दत्त मथुरिया
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महंगाई क्या है ? चुनावी लंगरों की हलुआ,पूरी का हिसाब है। जिसके लिए नेता जी को और उनकी पार्टी को मजबूरन व्यापारी और उद्योगपतियों से आर्थिक सहयोग लेना पड़ा। यह महंगाई कुछ और नहीं कार्यकर्ताओं की चुनावी हलुआ, पूरी की ब्याज सहित वापसी है। इसे ही सरकारी कृतज्ञता कहते है।चुनावों में न जनता लंगर खाती और न महंगाई बढ़त। महंगाई के लिए सीधे तौर पर जनता ही दोषी है। आखिर सहयोग के लिए कृतज्ञता प्रकट करना किसी भी द्रष्टि से गलत नहीं है। जब उन्होंने चुनाव जैसे संघर्ष...
मंगलवार, 6 जुलाई 2010
3:52 am
विवेक दत्त मथुरिया
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क्यों चिल्लाते हो ?चहु ओर भ्रष्टाचार हैयह ड्रामा है या सच्चाई ?तुम्हारी परिभाषा अजीब हैकाम हो जाये तो सब ठीक,नहीं तो भ्रष्टाचार ।अरे! तुम तो बुद्धिजीवी हो ,तीसमारखां होसमाज के नेतृत्वकर्ता हो ।दो अपने चिंतन कोक्रांतिकारी आयामक्यों दोगे ?अरे! सब जानते हैंकोठी किसकी ?त्यागी जी कीआवाज कहाँ से ?मौनी बाबा के आश्रम सेबच्चे किसके ?ब्रह्मचारी जी...
मंगलवार, 29 जून 2010
3:25 am
विवेक दत्त मथुरिया
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किसी ने मुझसे पूछा-मेरे देश की संसद कैसी हैमैंने कहा-एक दम गोल, शून्य के जैसी है...
सोमवार, 28 जून 2010
3:16 am
विवेक दत्त मथुरिया
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धर्म यानि कल्याण। हाँ ,यही सारभूत अर्थ है धर्म का। घर्म के इस आशय से शायद ही किसी कि असहमति हो। धर्म मनुष्य के जीवन पथ पर उस फल व् छायादार वृक्ष की तरह है जो जीवन संघर्ष से थके मनुष्य को आश्रय देता है और फिर आगे बढ़ने की ऊर्जा प्रदान करता है। इसलिए हमारे धर्म को सनातन धर्म कहा गया है। भारतीय सनातन धर्म की बुनियाद त्याग, तपस्या और सेवा जैसे सनातन तत्वों पर टिकी है। लेकिन वर्तमान भौतिकता का प्रभाव इसे खंडित करता नजर आ रहा है। धर्म उस कला या विद्या...
3:04 am
विवेक दत्त मथुरिया
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जब से कोठियों में चलने लगे हैं कोठे ।तब से वैश्याएँ बेरोजगार हो गयी...
2:36 am
विवेक दत्त मथुरिया
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हाट लगा है धर्म का, भक्त जनन को छूट ।जान माल सब है यहा रे लूट सके तो लूट...
मंगलवार, 15 जून 2010
11:14 pm
विवेक दत्त मथुरिया
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दादू दावा मत करे, बिन दावे दिन काट । कितने ही सोदा कर गए , ये सोदा गर की हाट॥...
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