रविवार, 26 दिसंबर 2010

मेरे गीत है न प्यार के, प्यार के न श्रंगार के, न मोसमी बाहर के
गीत बस गाता हूँ वक्त की पुकार के
वक्त क्या कह रहा, इसे पहचान लो
आँख मूंद कर न कोई बात मान लो
साजिशों ने डाला आज द्वार-द्वार डेरा है
जीतता अन्धकार पिटता सबेरा है
राम गोपाल मथुरिया

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