विवेक दत्त मथुरिया
जब सारा देश दीपावली मना रहा है, इसकी रौनक और चकाचौंध चारों तरफ फैली हुई है,तब कम ही लोग जानते हैं कि मूलत: ब्रज के रहने वाले इस पर्व को नहीं मनाते। ब्रज की हर परंपरा,खुशी और खामोशी का संबंध अनिवार्यत:यहां के परम प्यारे श्रीकृष्ण से है। दीपावली न मनाए जाने के पीछे भी वही हैं। धर्मग्रंथों में उल्लेख है कि दीपावली के दिन ही योगेश्वर श्रीकृष्ण ने गोलोक गमन किया था। शास्त्रों में वर्णन है कि योगी के देहत्यागने पर शोक नहीं मनाया जाता, लेकिन उत्सव भी नहीं मनाया जाता। फिर यह तो ब्रज है जहां की गोपियों ने उद्धव जैसे ब्रह्म ज्ञानी से भी-‘निर्गुण कौन देस को वासी’ जैसे प्रश्न पूछकर अंतत: उन्हें भक्ति से सराबोर कर दिया था। इसलिए यहां तो यह ब्रजराज,भक्तवत्सल परम प्रिय कृष्ण के, कान्हा के विछोह का अवसर है तो एक चुप सी लग जाती है ब्रजवासियों में। उनके मन में कहीं न कहीं श्रीकृष्ण का माधुर्य मचलता है पर यह दिन सामान्य नहीं इसलिए इसमें वह चमक, वह धमक वे नहीं देख पाते जो सारी दुनिया देखती है। इस तथ्य की पुष्टि ब्रजोद्धारक, ब्रजयात्रा प्रवर्तक, रासलीला अनुसरण कर्ता ब्रजाचार्य श्री नारायण भट्ट के बंशज ब्रजाचार्य पीठाधीश गोस्वामी दीपक राज भट्ट ने भी की है। इसीलिए ब्रज में दीवाली के मुकाबले गोवर्धन पूजा कहीं ज्यादा समद्ध है। क्योंकि इसका प्रचलन भी तो श्रीकृष्ण ने ही किया था। ब्रज की संस्कृति पूर्णत: गौ-गोप संस्कृति है जो हमारी कार्यशीलता को प्रमाणित करती है। ब्रज में दीवाली के प्रति उत्साह न होने के पीछे श्रीकृष्ण के विछोह का ही आधार है, लेकिन गोवर्धन पूजा पूरे उत्साह और उमंग के साथ होती है। ब्रज में गोवर्धन पूजा वाले दिन ही घरों में पकवान बनाये जाते हैं। गिर्राज पूजा गोवंश की समृध्दि के महत्व को स्थापित करने वाला पर्व है। इस दिन अन्नकूट बनाया जाता है। अन्नकूट शब्द ब्रज के कृषक उत्पादों की समृद्धि को दर्शाता है। अन्न यानि अनाज, कूट यानी पर्वत। गिर्राज पर्वत(गिरी कूट) भी अन्न के कूट से ढंक गया था। इसी समृद्धि का पर्व गोवर्धन पूजा या अन्नकूट के रूप में ब्रज में पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जाता है। वैसे ऐसा नहीं है कि दीपावली की रौनक और आतिशबाजी वगैरह यहां एकदम नहीं होते, होेते हंै लेकिन यह उन लोगों के यहां होते हैं जो मूलत: ब्रजवासी नहीं हैं, अर्थात जो कहीं और से आकर ब्रज में बस गए हंै। ब्रज में दीपावली की जो रौनक दिखती है वह इन्हीं लोगों के कारण है।
जब सारा देश दीपावली मना रहा है, इसकी रौनक और चकाचौंध चारों तरफ फैली हुई है,तब कम ही लोग जानते हैं कि मूलत: ब्रज के रहने वाले इस पर्व को नहीं मनाते। ब्रज की हर परंपरा,खुशी और खामोशी का संबंध अनिवार्यत:यहां के परम प्यारे श्रीकृष्ण से है। दीपावली न मनाए जाने के पीछे भी वही हैं। धर्मग्रंथों में उल्लेख है कि दीपावली के दिन ही योगेश्वर श्रीकृष्ण ने गोलोक गमन किया था। शास्त्रों में वर्णन है कि योगी के देहत्यागने पर शोक नहीं मनाया जाता, लेकिन उत्सव भी नहीं मनाया जाता। फिर यह तो ब्रज है जहां की गोपियों ने उद्धव जैसे ब्रह्म ज्ञानी से भी-‘निर्गुण कौन देस को वासी’ जैसे प्रश्न पूछकर अंतत: उन्हें भक्ति से सराबोर कर दिया था। इसलिए यहां तो यह ब्रजराज,भक्तवत्सल परम प्रिय कृष्ण के, कान्हा के विछोह का अवसर है तो एक चुप सी लग जाती है ब्रजवासियों में। उनके मन में कहीं न कहीं श्रीकृष्ण का माधुर्य मचलता है पर यह दिन सामान्य नहीं इसलिए इसमें वह चमक, वह धमक वे नहीं देख पाते जो सारी दुनिया देखती है। इस तथ्य की पुष्टि ब्रजोद्धारक, ब्रजयात्रा प्रवर्तक, रासलीला अनुसरण कर्ता ब्रजाचार्य श्री नारायण भट्ट के बंशज ब्रजाचार्य पीठाधीश गोस्वामी दीपक राज भट्ट ने भी की है। इसीलिए ब्रज में दीवाली के मुकाबले गोवर्धन पूजा कहीं ज्यादा समद्ध है। क्योंकि इसका प्रचलन भी तो श्रीकृष्ण ने ही किया था। ब्रज की संस्कृति पूर्णत: गौ-गोप संस्कृति है जो हमारी कार्यशीलता को प्रमाणित करती है। ब्रज में दीवाली के प्रति उत्साह न होने के पीछे श्रीकृष्ण के विछोह का ही आधार है, लेकिन गोवर्धन पूजा पूरे उत्साह और उमंग के साथ होती है। ब्रज में गोवर्धन पूजा वाले दिन ही घरों में पकवान बनाये जाते हैं। गिर्राज पूजा गोवंश की समृध्दि के महत्व को स्थापित करने वाला पर्व है। इस दिन अन्नकूट बनाया जाता है। अन्नकूट शब्द ब्रज के कृषक उत्पादों की समृद्धि को दर्शाता है। अन्न यानि अनाज, कूट यानी पर्वत। गिर्राज पर्वत(गिरी कूट) भी अन्न के कूट से ढंक गया था। इसी समृद्धि का पर्व गोवर्धन पूजा या अन्नकूट के रूप में ब्रज में पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जाता है। वैसे ऐसा नहीं है कि दीपावली की रौनक और आतिशबाजी वगैरह यहां एकदम नहीं होते, होेते हंै लेकिन यह उन लोगों के यहां होते हैं जो मूलत: ब्रजवासी नहीं हैं, अर्थात जो कहीं और से आकर ब्रज में बस गए हंै। ब्रज में दीपावली की जो रौनक दिखती है वह इन्हीं लोगों के कारण है।