बुधवार, 17 दिसंबर 2014


दुनिया को अब जरूरत है नए धर्म की 

विवेक दत्त मथुरिया
मंगलवार को जो कुछ पाकिस्तान में हुआ उस दास्तान को कहने में शब्द भी चूक रहे हैं। जिहाद के नाम पर इसे खौफ और आतंक का कारोबार कहिए साहब। सवाल इस बात का है कि इंसानियत को शर्मसार करने वाला यह कृत्य महजब के नाम से किया जा रहा है। शर्म तो धर्म के मसीहाओं को आनी चाहिए।

अब वक्त आ गया समूची मानवता की रक्षा मौजूदा धर्मों के रहते हुए नहीं की जा सकती, क्योंकि मजहब के पैरोकार सियासत की गोद में जो बैठे हैं। यह बात सभी धर्मों के पैरोकारों पर लागू होती है। धर्म के नाम पर मानवता विरोधी कृत्य अब लोगों में अनास्था पैदा कर रहे हैं। किसी भी दरिंदे को स्कूल के उन बच्चों में अपने बच्चों की मासूमियत नहीं दिखी। असल में उनका इस्लाम से दूर-दूर तक वास्ता ही नहीं था।

सच तो यह है कि जो भी धर्म को जानता है, वह मानवता के विरुद्ध नहीं जा सकता। यह वक्त पूरी दुनिया के लिए आतंक के खिलाफ एकजुट होने का है और उसका एकमात्र एजेंडा मानवता की हर हाल में रक्षा होना चाहिए। विश्व मानवता की रक्षा के लिए अपनी संवेदनाओं को राष्ट्रवादी और मजहबी दायरों से परे जाकर विस्तार देना होगा। क्योंकि वैश्वीकरण की संस्कृ ति में इंसानियत ही नया धर्म हो सकता है।

प्रेम, शांति, सेवा, सहयोग और करुणा उसके बुनियादी आधार होने चाहिए । सार रूप में सभी धर्मों के बुनियादी आधार यही हैं। यह अलग बात है कि लोभ, लालच और सियासत से पैदा हुई अंधता में यह पांच सनातन तत्व धर्म के पैरोकारों को यह अब दिखाई नहीं देते। धर्म को आस्था की बजाय अब तर्क की कसौटी पर कसना होगा और वह कसौटी होगी मानवता।

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