शिकायतें बहुत है मगर किसे सुनाउ,
जिसे देखो,वही हलाक करने में है लगा
जिंदगी फंसी है जद्दोजहद में , यू न डर इस रात के अँधेरे से ,
अगर बनना है तुझे आदमी
अगर मरना है तो फिर तू जी ,
आदमी होने की बस इतनी तफतीस है
बुधवार, 27 अप्रैल 2011
8:12 am
विवेक दत्त मथुरिया
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