बुधवार, 27 अप्रैल 2011

शिकायतें बहुत है मगर किसे सुनाउ,
सब मस्त है अपनी ढपली,अपने राग में ।

जिसे
देखो,वही हलाक करने में है लगा
यह देश है या कसाइयों का बाड़ा ।
जिंदगी फंसी है जद्दोजहद में ,
जैसे किश्ती फंसी हो भंवर में ।
यू न डर इस रात के अँधेरे से ,
फिर एक नयी सुबह होने वाली है

अगर बनना है तुझे आदमी
जा किसी से दिल लगा .
अगर मरना है तो फिर तू जी ,
ताकि मोंत भी एक जश्न हो तेरा
आदमी होने की बस इतनी तफतीस है
किसी के दर्द का एहसास होता है या नहीं .


Related Posts:

  • सत्ताधीशों से अपीलआज देश से बसंत चाहता यह पावन अनुबंधलुट न जाये बाहर, मालियों मधुवन की सौंगंधतुम्हें इस उपवन की सौंगधदेश के जन- जन की सौंगंधसोने सा पंजाब मेरा और चांदी सा कश्मीरखानों का वह प्रदेश निराला ब्रह्मपुत्र के तीरनागालैंड,मिजोरम, त्रिप… Read More
  • क्रिकेट खेल नहीं,एक नशा है19 फरवरी से क्रिकेट वर्ड कप की शुरूआत हो चुकीहै। ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन रहे देशों में क्रिकेट का बुखार जोर पकड़ चुका है। अंग्रेज सदैव से ही दूरदृष्टा,सफल व्यापारी , कुटिल कुटिनीतिज्ञ रहे है। अंग्रेजों की इन विशेषताओं के… Read More
  • कमलेश्वर बरसाना मैवरिष्ठ कथाकार पत्रकार कमलेश्वर,शहीदभगत सिंह विचारके संस्थापक कामरेड राम गोपाल मथुरिया (मध्य) व् वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप मंडाव बरसाना मै । … Read More
  • ये लोकतंत्र नहीं, लूटतंत्र है जनाब! Read More
  • मेरे गीत है न प्यार के ...मेरे गीत है न प्यार के, प्यार के न श्रंगार के, न मोसमी बाहर केगीत बस गाता हूँ वक्त की पुकार केवक्त क्या कह रहा, इसे पहचान लोआँख मूंद कर न कोई बात मान लोसाजिशों ने डाला आज द्वार-द्वार डेरा हैजीतता अन्धकार पिटता सबेरा हैराम गोप… Read More

0 टिप्पणियाँ:

एक टिप्पणी भेजें

Unordered List

Sample Text

Blog Archive

Popular Posts

Text Widget