
भगत सिंह को माना, पर जाना नहीं
विवेक दत्त मथुरिया
आज तरक्की की हवाई बातों के बीच देश आज भी सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक विषमता को बोझ तले दबा है। उत्पीड़न, अन्याय और शोषण के जमीनी सच को हमारे सियासदां स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं। आज देश में जिस तरह की आर्थिक नीतियों से सामाजिक और राजनीतिक संस्कृति को संरक्षण प्रदान किया जा रहा है, वह पूरी तरह साम्राज्यवाद का ही बदला...